RBI की मौद्रिक नीति क्या होती है?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) हर दो महीने में एक बड़ी घोषणा करता है, जिसे कहते हैं मौद्रिक नीति (Monetary Policy)। इसका मकसद होता है देश में महंगाई को कंट्रोल करना, रुपया मजबूत बनाए रखना और आर्थिक स्थिरता लाना।
इस पॉलिसी में RBI ब्याज दरें तय करता है, जैसे कि रेपो रेट, और साथ ही देश की आर्थिक स्थिति पर भी अपनी राय देता है।
रेपो रेट क्या है? आसान भाषा में समझिए
रेपो रेट यानी Repurchase Rate — ये वो दर है जिस पर RBI कमर्शियल बैंकों को शॉर्ट टर्म लोन देता है।
कैसे काम करता है?
- बैंक RBI को सरकारी सिक्योरिटीज बेचते हैं
- वादा करते हैं कि इन्हें बाद में वापस खरीद लेंगे
- इस डील पर जो ब्याज लगता है, वही है Repo Rate
अगर रेपो रेट बढ़ता है – लोन लेना महंगा हो जाता है
अगर घटता है – लोन सस्ता, यानी ज्यादा लोग खर्च करेंगे, इकोनॉमी में जान आएगी
रेपो रेट: भारतीय अर्थव्यवस्था का टेम्परेचर कंट्रोल
रेपो रेट को इकोनॉमी का थर्मोस्टैट कहें तो गलत नहीं होगा।
- महंगाई बढ़े → RBI रेपो रेट बढ़ाता है
- ग्रोथ धीमी हो → RBI रेपो रेट घटाता है
मुख्य काम:
- महंगाई पर कंट्रोल
- लोन की डिमांड पर असर
- GDP ग्रोथ को दिशा देना
- रुपये की वैल्यू को स्थिर रखना
RBI की ताज़ा अपडेट: अक्टूबर 2025 की मौद्रिक नीति
रेपो रेट: 6.50%
रिज़र्व बैंक ने अक्टूबर 2025 में रेपो रेट को 6.50% पर बनाए रखा। वजह? महंगाई अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है, जबकि इकोनॉमिक ग्रोथ सामान्य रही।
| पॉलिसी टूल | रेट (%) |
|---|---|
| Repo Rate | 6.50 |
| Reverse Repo Rate | 3.35 |
| Bank Rate | 6.75 |
| MSF (Marginal Standing Facility) | 6.75 |
Source: RBI आधिकारिक वेबसाइट – अक्टूबर 2025 मौद्रिक नीति
RBI की मौद्रिक नीति में कौन-कौन से टूल होते हैं?
- Repo Rate
- Reverse Repo Rate
- CRR (Cash Reserve Ratio)
- SLR (Statutory Liquidity Ratio)
- OMO (Open Market Operations)
- Policy Stance – जैसे Accommodative, Neutral, या Hawkish
इन सभी टूल्स का मकसद एक ही होता है – देश की अर्थव्यवस्था को बैलेंस में रखना।
रेपो रेट और महंगाई का रिश्ता
रेपो रेट RBI का सबसे पावरफुल हथियार है महंगाई के खिलाफ।
- ऊंचा रेपो रेट → लोन महंगे → खर्च कम → महंगाई नीचे
- नीचा रेपो रेट → लोन सस्ते → खर्च ज़्यादा → महंगाई बढ़ सकती है
भारत का Flexible Inflation Targeting Framework (FIT) का लक्ष्य है – 4% महंगाई, जिसमें ±2% की छूट है।
लोन लेने वालों और बैंकों पर असर
RBI जब रेपो रेट में बदलाव करता है, उसका सीधा असर आप पर पड़ता है:
Borrowers पर:
- होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन महंगे या सस्ते
- EMI बढ़ती या घटती है
Banks पर:
- Lending Rate (MCLR) बदलते हैं
- मुनाफे और लोन देने की स्ट्रैटेजी पर असर
उदाहरण: ₹50 लाख के होम लोन पर अगर रेपो रेट 0.25% (25 बेसिस पॉइंट) बढ़ा, तो EMI करीब ₹800–₹1,200 तक बढ़ सकती है!
रेपो रेट vs रिवर्स रेपो रेट – जानिए फर्क
| फीचर | रेपो रेट | रिवर्स रेपो रेट |
|---|---|---|
| मतलब | RBI बैंकों को लोन देता है | बैंक RBI को पैसा देते हैं |
| मकसद | महंगाई कंट्रोल, लिक्विडिटी बढ़ाना | ज्यादा कैश खींचना |
| असर | लोन महंगे या सस्ते होते हैं | बैंकों को पैसा जमा कराने में फायदा |
| मौजूदा रेट (अक्टूबर 2025) | 6.50% | 3.35% |
ये दोनों मिलकर बनाते हैं “Liquidity Corridor”, जिससे बाजार में स्थिरता बनी रहती है।
रेपो रेट और आपकी EMI का सीधा कनेक्शन
ये मुद्दा आपके घर तक आता है।
🔺 जब रेपो रेट बढ़ता है:
- EMI बढ़ती है (अगर फ्लोटिंग रेट लोन है)
- प्रीपेमेंट महंगा हो जाता है
- लोग नया घर खरीदना टालते हैं
🔻 जब रेपो रेट घटता है:
- लोन सस्ते होते हैं
- बैंक बेहतर ऑफर देते हैं
- रियल एस्टेट सेक्टर को बूस्ट मिलता है
Monetary Policy Committee (MPC): कौन बनाता है पॉलिसी?
साल 2016 में बना MPC – ये 6 लोगों की एक कमेटी है जो तय करती है कि रेपो रेट क्या होना चाहिए।
| सदस्य | किसने नियुक्त किया |
|---|---|
| RBI गवर्नर (चेयरपर्सन) | स्वतः पद से |
| RBI डिप्टी गवर्नर | स्वतः पद से |
| एक RBI अधिकारी | स्वतः पद से |
| 3 बाहरी सदस्य | भारत सरकार |
ये कमेटी हर दो महीने में मीटिंग करती है, और बहुमत से फैसला लिया जाता है।
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